सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास 


सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है, विश्व की सबसे प्राचीन और उन्नत सभ्यताओं में से एक थी। यह लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व तक (लगभग 2000 वर्षों तक) भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में फली-फूली। इसका विस्तार वर्तमान भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में था, जिसमें सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों का क्षेत्र प्रमुख था। यह सभ्यता अपने शहरी नियोजन, उन्नत जल निकासी प्रणाली, और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है।

1. उत्पत्ति और कालखंडप्रारंभिक काल (3300-2600 ई.पू.): इस काल में छोटे-छोटे गांवों और कृषि आधारित समुदायों का विकास हुआ। मेहरगढ़ (वर्तमान बलूचिस्तान, पाकिस्तान) इस सभ्यता का प्रारंभिक केंद्र था, जहां खेती और पशुपालन शुरू हुआ।

परिपक्व काल (2600-1900 ई.पू.): यह सभ्यता का स्वर्ण युग था, जब हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, धोलावीरा, लोथल और राखीगढ़ी जैसे बड़े शहर विकसित हुए। इस काल में उन्नत शहरी नियोजन, व्यापार और कला का विकास हुआ।

उत्तरवर्ती काल (1900-1300 ई.पू.): इस काल में सभ्यता का पतन शुरू हुआ। शहरों का परित्याग, जलवायु परिवर्तन, नदी मार्गों में बदलाव और बाहरी आक्रमण इस पतन के संभावित कारण माने जाते हैं।

2. प्रमुख स्थलहड़प्पा (पंजाब, पाकिस्तान): इस स्थल की खोज 1921 में दयाराम साहनी ने की। यहाँ अनाज भंडार, किलेबंदी और उन्नत जल निकासी प्रणाली के अवशेष मिले।

मोहनजोदड़ो (सिंध, पाकिस्तान): 1922 में राखालदास बनर्जी द्वारा खोजा गया यह स्थल "मृतकों का टीला" के नाम से जाना जाता है। यहाँ विशाल स्नानागार (Great Bath), अन्न भंडार और सड़कों का जाल मिला।

धोलावीरा (गुजरात, भारत): खंभात की खाड़ी के पास स्थित यह स्थल अपने जल संरक्षण तंत्र और विशाल स्टेडियम के लिए प्रसिद्ध है।

लोथल (गुजरात, भारत): यह एक महत्वपूर्ण बंदरगाह शहर था, जहां विश्व का सबसे प्राचीन गोदीयार्ड (Dockyard) मिला।

राखीगढ़ी (हरियाणा, भारत): यह सभ्यता का सबसे बड़ा पुरातात्विक स्थल माना जाता है।

3. विशेषताएँशहरी नियोजन: शहर ग्रिड प्रणाली पर बने थे, जिसमें सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। घरों में जल निकासी प्रणाली और कुएँ थे।

लिपि: सिंधु लिपि चित्रात्मक थी, जिसमें 400 से अधिक प्रतीक थे। यह अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है।

व्यापार: मेसोपोटामिया, मिस्र और अन्य क्षेत्रों के साथ व्यापार होता था। मनके, कपास, और धातु के सामान निर्यात किए जाते थे।

कला और शिल्प: मिट्टी के बर्तन, कांस्य की मूर्तियाँ (जैसे "नाचती हुई लड़की"), और मुहरें (Pashupati Seal) इस सभ्यता की कला की उत्कृष्टता दर्शाती हैं।

धर्म: पशुपति (शिव का प्रारंभिक रूप), मातृदेवी, और अग्नि पूजा के साक्ष्य मिले हैं।

कृषि और अर्थव्यवस्था: गेहूँ, जौ, कपास और चावल की खेती होती थी। पशुपालन में गाय, भैंस और बकरी शामिल थे।

4. पतन के कारणप्राकृतिक आपदाएँ: बाढ़, सूखा, और सिंधु नदी के मार्ग में परिवर्तन।

जलवायु परिवर्तन: वर्षा में कमी और सूखे ने कृषि को प्रभावित किया।

बाहरी आक्रमण: कुछ विद्वान आर्य आक्रमण को इसका कारण मानते हैं, हालांकि यह विवादास्पद है।

आर्थिक कारण: व्यापार में कमी और संसाधनों का ह्रास।

प्रमुख छवियाँ (वर्णन, क्योंकि मैं छवियाँ अपलोड नहीं कर सकता)मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार (Great Bath): यह एक बड़ा आयताकार जलाशय है, जो जलरोधी ईंटों से बना है। इसे धार्मिक अनुष्ठानों के लिए उपयोग किया जाता था।

पशुपति मुहर: इस मुहर पर एक योगी (संभवतः शिव) को जानवरों से घिरा हुआ दिखाया गया है, जो धार्मिक विश्वासों को दर्शाता है।

नाचती हुई लड़की की मूर्ति: कांस्य से बनी यह छोटी मूर्ति एक नृत्य करती हुई युवती को दर्शाती है, जो कला की उत्कृष्टता दिखाती है।

लोथल का गोदीयार्ड: यह आयताकार संरचना व्यापारिक जहाजों के लिए उपयोग की जाती थी।

सिंधु लिपि की मुहरें: पत्थर की छोटी मुहरों पर चित्रलिपि और जानवरों (जैसे एकशृंगी गैंडा) के चित्र उकेरे गए हैं।

सांस्कृतिक महत्वसिंधु घाटी सभ्यता ने भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक नींव रखी। इसका शहरी नियोजन, स्वच्छता प्रणाली और व्यापारिक नेटवर्क आधुनिक युग में भी प्रासंगिक हैं। इसकी लिपि और धार्मिक प्रथाएँ आज भी शोध का विषय हैं।यदि आप विशिष्ट छवियाँ देखना चाहते हैं, तो मैं सुझाव दूंगा कि आप पुरातत्व सर्वेक्षण की वेबसाइट (Archaeological Survey of India) या विश्वसनीय स्रोतों जैसे नेशनल म्यूजियम, नई दिल्ली की वेबसाइट पर जाएँ, जहाँ हड़प्पा सभ्यता के अवशेषों की तस्वीरें उपलब्ध हैं। यदि आपको किसी विशेष पहलू पर गहराई से जानकारी चाहिए, तो बताएँ


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